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“India’s First Divorce, First Female Doctor: The Untold Story of Rukhmabai”

“India’s First Divorce, First Female Doctor: The Untold Story of Rukhmabai”

Information hindi | By Admin | Sep 25, 2025


🕰️ रुख्माबाई — भारत की निडर बेटी जो कानून और समाज को हिला गई

 

प्रारंभ — बचपन और विवाह

 

रुख्माबाई का जन्म 22 नवंबर 1864 को मुंबई (तब बॉम्बे) में हुआ। 

 

जब वह लगभग 11 वर्ष की थी, तब उन्हें दादा जी भिकाजी नाम के युवक (उम्र लगभग 19 वर्ष) के साथ शादी कर दी गई। 

 

इस शादी को मनाने की रस्म (consummation) कुछ महीने बाद शुरू होना थी। परंतु रुख्माबाई के दत्तक पिता Dr. सक्हारम अर्जुन, जो समाज सुधारवादी थे, ने उस उम्र में इस विवाह को पारंपरिक रूप से आगे बढ़ने से रोका। 

 

 

 

⚖️ “Reinstatement of Conjugal Rights” और मुकदमा

 

1884 में दादा जी ने अदालत में “restitution of conjugal rights” की याचिका दायर की — यानी अदालत से माँगा कि रुख्माबाई को दादा जी के साथ रहने के लिए मजबूर किया जाए। 

 

रुख्माबाई ने इसका खुला विरोध किया। उन्होंने कहा कि उन्होंने इस शादी को चुन कर नहीं किया, और अब वह उस ज़िंदगी का हिस्सा नहीं बनना चाहती। 

 

1885 में कोर्ट ने फैसला दिया कि एक नाबालिग लड़की को उसके पति के साथ रहने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। 

 

अदालत के बाद पुनरावलोकन हुआ और 1887 में, न्यायमूर्ति Farran ने आदेश दिया कि रुख्माबाई या तो पति संग जाएँ या छह महीने जेल जाएँ। इस फैसले पर रुख्माबाई ने कहा कि वह जेल जाना बेहतर समझती है बजाय कि अनचाही जिंदगी स्वीकार करने के। 

 

अंततः 1888 में ही एक समझौता हुआ: दादा जी ने 2,000 रुपये स्वीकार किए और अपना दायित्व–दावा छोड़ दिया। इस तरह रुख्माबाई को वैध रूप से विधिवत “divorce-like” आज़ादी मिली। 

 

🎓 शिक्षा और चिकित्सा जीवन

 

रुख्माबाई ने इंग्लैंड में अध्ययन किया — London School of Medicine for Women एवं Royal Free Hospital में। 

 

1894 में उन्होंने डॉक्टर की उपाधि प्राप्त की। 

 

भारत लौटकर उन्होंने सूरत में महिलाओं के अस्पताल (Women’s Hospital) में Chief Medical Officer के पद पर काम किया। 

 

बाद में, राजकोट (Rajkot) की ज़ेनाना अस्पताल (Women’s / Zenana State Hospital) में सेवा की। 

 

रुख्माबाई ने सामाजिक सुधारों पर भी लिखा, जैसे ‘पर्दा’ की प्रथा पर पैंफ्लेट प्रकाशित किया, और महिलाओं की स्थिति सुधारने की वकालत की। 

 

📜 कानूनी और सामाजिक प्रभाव

 

इस मुकदमे और बहस ने Age of Consent Act, 1891 को प्रभावित करने में बड़ी भूमिका निभाई। उस कानून ने भारतीय ब्रिटिश राज में सहमति की न्यूनतम आयु को 10 वर्ष से बढ़ाकर 12 वर्ष किया। 

 

रुख्माबाई उस समय की पहली हिंदू महिला थीं जिनके मामले में ऐसी कानूनी लड़ाई हुई — और वे “पहली महिला जो कानूनी रूप से अलग हुईं (divorced)” मानी जाती हैं। 

 

उन्होंने अपने पति का नाम इस्तेमाल नहीं किया — सिर्फ “रुख्माबाई” नाम से ही वे पहचानी गईं। 

 

🕊️ जीवन के अंत और विरासत

 

रुख्माबाई ने 25 सितंबर 1955 को 90 वर्ष की आयु में लंग कैंसर से निधन किया। 

 

उनकी बहादुरी, शिक्षा और लड़ाई आज भी महिलाओं के अधिकारों की प्रेरणा है।

 

2017 में Google ने उनके जन्मदिन (22 नवंबर) को डूडल के रूप में मनाया। 

 

उनकी कहानी को “Doctor Rakhmabai” नामक मराठी/हिंदी फिल्म में दिखाया गया। 

 

✨ कुछ प्रेरणादायक उद्धरण और थीम

 

“The brutal custom of child-marriage had deprived all happiness of my life… I am isolated for no fault of mine.” — उन्होंने यह लाइन The Times of India में ‘A Hindu Lady’ नाम से लेख में लिखी थी। 

 

उन्होंने शिक्षा, स्वायत्तता और कानून की शक्ति पर भरोसा किया — और साबित किया कि अधिकारों के लिए आवाज़ उठाना कभी बेमतलब नहीं जाता।

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